25 फ़रवरी 2012

तुर्की में रवींद्र


जनसत्ता २५ फरवरी,२०१२

दुनिया मेरे आगे

तुर्की में रवींद्र    

विनोद तिवारी

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की १५०वीं जयन्ती पर देश –विदेश में अनेकों आयोजन और समारोह हुए, हो रहे हैं| आधुनिक भारतीय लेखकों,साहित्यकारों और चिंतकों में रवीन्द्रनाथ टैगोर की जो वैश्विक व्याप्ति और स्वीकृति है वह शायद किसी की नहीं| आधुनिक विश्व की राजनीतिक और सांस्कृतिक बिरादरी में गांधी और टैगोर ये दो ऐसे नाम हैं जिन्हें वैश्विक मानवता के हित में अमन और शान्ति के नजीर के तौर पर पेश किया जाता है| तुर्की में भी गांधी और टैगोर को बहुत मान दिया जाता है| तुर्की के लोग गांधी से आधुनिक तुर्की के निर्माता मुस्तफा कमाल अतातुर्क की बराबरी कर खुश होते हैं| गांधी और टैगोर के नाम पर यहाँ सड़कें हैं| टैगोर सड़क पर टैगोर की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है| यह प्रतिमा स्वयं टैगोर द्वारा बनाये गए अपने चित्र ( सेल्फ पोर्ट्रेट ) की हूबहू नक़ल कर बनाई गयी है| प्रतिमा के एक ओर अंकारा की अत्याधुनिक प्रसिद्ध मस्जिद है और दूसरी ओर मशहूर पार्क होटल| प्रतिमा से सीधे ढलान पर उतरकर दूर तक ‘टैगोर स्ट्रीट’ की बर्फ पर चलते चलते जब थक गया तो उल्टे पाँव फिर लौट कर घर आया | एक पार्क था भी पर आप बैठने की सोच भी नहीं सकते | पूरा पार्क बर्फ की मोटी परत से ढका गुमसुम और एकाकी | लौटते हुए ध्यान से प्रतिमा को देखा तो गुरुदेव के सिर पर सँवरे हुए धवल केश चमक रहे हैं , पर नहीं यह भ्रम था- वे केश नहीं थे , बर्फ था | वह गुरुदेव नहीं थे, प्रतिमा थी | कठोर प्रस्तर की प्रतिमा, पर छबि वही करुणामयी – ‘ कठिनेर बुके तन करुनेर छबि’ | मेरे घर से यह जगह १ किलोमीटर की दूरी पर है| इस बीच की दूरी में सैकड़ों एकड़ में फैला तुर्की के राष्ट्रपति का निवास है जिसमें कभी कमाल अतातुर्क रहते थे | राष्ट्रपति निवास की पश्चिमी दीवार मेरे घर से लगी हुई  है | दीवार से लगे जगह जगह छोटे छोटे झोपड़ी नुमा बैरक बने हैं जहाँ सस्त्र्धारी सैनिक मुस्तैद रहते हैं| मेरा मन अक्सर इस कौतुहल में रहता है कि एक बार यदि भीतर जाकर देख पाता तो देखता कि इतने विशाल रहस्यनुमा जगह पर कितने लोग रहते हैं, क्या करते हैं |  
पिछले दिनों अंकारा स्थित भारतीय दूतावास की ओर से यहाँ के ‘मिल्ली कुतुफाने’(राष्ट्रीय पुस्तकालय) में ‘गीतांजलि’ के तुर्की अनुवाद का लोकार्पण समारोह हुआ | संस्कृति मंत्रालय, भारत की मदद से बड़े आकार में प्रकाशित यह संस्करण बहुत ही आकर्षक और मनोहारी दिखता है | एक ओर अंगरेजी दूसरी ओर तुर्की, नीचे हर पेज पर कोई न कोई चित्र | ‘गीतांजलि’ का तुर्की अनुवाद सन् १९४१ में बुलेंत एजेवित ने किया था | आगे चलकर  बुलेंत एजेवित चार बार तुर्की के प्रधानमंत्री रहे | गुरुदेव का निधन ७ अगस्त १९४१ को हुआ, पता नहीं इसका प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ या उनके रहते | कार्यक्रम में ही यहाँ के एक लेखक इल्हान अकीन से परिचय हुआ | जब इल्हान अकीन से मैंने पूछा कि तुर्की में टैगोर को लोग क्यों पसंद करते हैं ? अकीन ने जो जवाब दिया वह काफी महत्वपूर्ण है | उन्होंने कहा कि, टैगोर का यह कथन कि “ हिंदुस्तान एक विचार है न कि मात्र भूगोल” हमारे धारणा मुझे बहुत पसंद है | अंत में अकीन ने जो कहा वह काफी प्रभावी था- “टैगोर दुनिया के प्रत्येक कोने में सद्भावना के महानतम  और अतिप्रभावी भारतीय राजदूत हैं” (टैगोर इज  इंडिया’ज ग्रेटेस्ट एंड मोस्ट इफेक्टिव एम्बेसडर ऑफ गुडविल टू द वर्ल्ड एट लार्ज) | समारोह में जो भीड़ एकत्र हुई थी उसे देखकर गुरुदेव के प्रति तुर्क – प्रेम जाहिर हो रहा था | श्री इल्हान अकीन आजकल चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन को आधार बनाकर ‘द टियर्स ऑफ गंगेश’ नाम से अंग्रेजी में एक उपन्यास लिख रहे हैं | बहुत सारी सूचनाओं , नामों, तथ्यों को मुझसे स्पष्ट करते रहते हैं | भारत का इतिहास, उसकी सभ्यता – संस्कृति और उसका साहित्य आज भी लोगों के लिए प्रेरक है यह कम महत्त्व की बात नहीं |
               मैंने तुम्हारा मृदु चेहरा देखा है
               मैं तुम्हारी विषण्ण धूलि को प्यार करता हूँ
               धरती माँ !
   (आई हैव सीन योर टेंडर फेस एंड आई लव योर मॉर्नफुल डस्ट, मदर अर्थ.)   
                                                                                            
                         
विनोद तिवारी 
विसिटिंग प्रोफ़ेसर 
अंकारा विश्वविद्यालय, अंकारा, तुर्की
फोन :००९०३१२४४१८७५७ मोबा.-००९०५३०३६३९१२८